अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस), हरियाणा प्रलेस, प्रलेस सिरसा व पंजाबी लेखक सभा, सिरसा ने प्रतिबद्ध प्रगतिशील पाकिस्तानी लेखक अहमद सलीम के निधन पर गहन शोक का इज़हार किया है। हरियाणा प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष डा. सुभाष मानसा, अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) के राष्ट्रीय सचिवमंडल सदस्य एवं हरियाणा प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव डा. हरविंदर सिंह सिरसा, प्रलेस सिरसा के अध्यक्ष डा. गुरप्रीत सिंह सिंधरा, सचिव डा. शेर चंद, पंजाबी लेखक सभा, सिरसा के अध्यक्ष परमानंद शास्त्री एवं सचिव सुरजीत सिरड़ी ने कहा है कि अहमद सलीम का निधन पाकिस्तान एवं भारत के प्रगतिशील लेखक आंदोलन के लिए एक अपूरणीय क्षति है। 26 जनवरी 1945 को पंजाब (पाकिस्तान) के मियाना गोंदल में पैदा हुए अहमद सलीम को उनके शोध, लेखन और सियासत के क्षेत्र में सहयोग के मद्देनज़र पाकिस्तान सरकार द्वारा प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस के आजीवन उपलब्धि पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका है। अहमद सलीम पश्चिमी पाकिस्तान के उन मुट्ठी भर लोगों में से थे जिन्होंने 70 के दशक की शुरुआत में बंगाली स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थन में स्पष्ट रुख अपनाया और ‘जीवे बंगलादेश’ नाम की नज़्म लिखी जिसके फलस्वरूप उन्हें दो वर्ष की कैद, ज़ुर्माना और बीस कोड़ों की सजा हुई। उन्होंने अफ़कार और एक श्रमिक पत्रिका जफ़ाकैश का संपादन भी किया। एक कवि, लेखक, शिक्षक, अनुवादक, शोधकर्ता, संपादक और कार्यकर्ता के तौर पर उनकी 150 के करीब रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके द्वारा संकलित और संपादित लगभग 40 पुस्तकें पंजाबी, अंग्रेजी और उर्दू साहित्य का अन्वेषण करती हैं। पंजाबी साहित्य, साहित्यिक आलोचना के विकास, इतिहास में शोध और समुदायों को एक साथ लाने के उनके निरंतर प्रयासों को सदैव याद रखा जाएगा। मानवीय अधिकारों व भाषाई अधिकारों के प्रति उनकी मज़बूत प्रतिबद्धता अनुकरणीय एवं उदाहरणीय है। अहमद सलीम महान लेनिन, शहीद भगत सिंह, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, पाश और उस्ताद दामन की विरासत के ऐसे लेखक थे जिन्होंने भारत और पाकिस्तान की साहित्यिक परंपरा के बीच एक पुल की ज़िम्मेवारी का बाख़ूबी निर्वहन किया। 2015 में अपने भारत भ्रमण के दौरान उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के पंजाबी विभाग द्वारा दस दिनों के लिए विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया था। इस दौरान चंडीगढ़ व पंजाब में उनके व्याख्यानों के आयोजन के साथ उन्हें डा. रवि मैमोरियल पुरस्कार से भी प्सम्मानित किया गया । लेखक पदाधिकारियों ने कहा है कि पाकिस्तान में अंतर-समुदाय, अंतर-धार्मिक संबंधों को मजबूत करने, भारतीय एवं पाकिस्तानी पंजाबियों के बीच संचार की रेखाओं को विकसित करने, बनाए रखने और धार्मिक तथा राजनीतिक पूर्वाग्रह को खत्म करने की दृष्टि से पाकिस्तान के पाठ्यक्रम और पाठ्य पुस्तकों की जांच करने के लिए उनके विलक्षण योगदान की प्रासंगिकता सदैव बरक़रार रहेगी।
Check Also
बलिदान की भावना के साथ गहन अध्ययन व चिंतन-मनन का भी पर्याय थे शहीद-ए-आज़म भगत सिंह: डा. संदीप गोयल
जीएनसी सिरसा में शहीद-ए-आज़म भगत सिंह जयंती पर हुआ ‘इन्कलाब ज़िंदाबाद’ ना…