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प्रगतिशीलता लेखन की अनिवार्य शर्त: डा. सुभाष मानसा

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प्रलेस सिरसा ने किया पुस्तक-लोकार्पण एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन

पांच पुस्तकों का हुआ लोकार्पण
संघर्षरत महिला खिलाड़ियों के समर्थन में किया प्रस्ताव पारित
सिरसा: 29 मई:
लेखक यदि वह वास्तव में लेखक है तो वह प्रगतिशील होगा ही क्योंकि प्रगतिशीलता लेखन की अनिवार्य शर्त है। सामाजिक कुरीतियों, विद्रूपताओं, कट्टरपंथ, सामाजिक-आर्थिक विषमतायों की खिलाफत, हाशियाकृत पक्षों, महिला सशक्तिकरण, सांप्रदायिक सौहार्द, वैश्विक शांति एवं आपसी भाईचारे के लिए प्रयास प्रगतिशीलता के मुख्य मानदंड हैं और एक लेखक के लिए इनके प्रति प्रतिबद्ध होना ही चाहिए। यह विचार प्रलेस हरियाणा के अध्यक्ष डा. सुभाष मानसा ने अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) सिरसा के तत्वावधान में सिरसा के श्री युवक साहित्य सदन में संघर्षरत महिला खिलाड़ियों को समर्पित साहित्यिक कार्यक्रम ‘पुस्तक-लोकार्पण एवं विचार-गोष्ठी’ में अपने अध्यक्षीय संबोधन में व्यक्त किए। उन्होंने उपस्थितजन का आह्वान किया कि वह संघर्षरत महिला खिलाड़ियों के आंदोलन में अपना यथा संभव सहयोग प्रदान करें। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रलेस हरियाणा के अध्यक्ष डा. सुभाष मानसा, उपाध्यक्ष परमानंद शास्त्री, महासचिव डा. हरविंदर सिंह सिरसा, संगठन सचिव प्रो. एस जेड एच नक़वी, प्रलेस सिरसा के अध्यक्ष डा. गुरप्रीत सिंह सिंधरा व सचिव डा. शेर चंद पर आधारित अध्यक्षमंडल ने की। कार्यक्रम का शुभारंभ महक भारती द्वारा एक इन्क़लाबी गीत की भावपूर्ण प्रस्तुति से हुआ। प्रलेस सिरसा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुरजीत सिरड़ी द्वारा आयोजन की रूपरेखा से अवगत करवाने व सभी उपस्थितजन के स्वागत उपरांत ईशनजोत कौर ने संघर्षरत महिला खिलाड़ियों के समर्थन में प्रस्ताव पेश किया जिसे सदन द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया। प्रस्ताव में केंद्र सरकार से दोषियों के विरुद्ध सख़्त कार्रवाई कर महिला खिलाड़ियों को तुरंत न्याय दिलवाए जाने की मांग करते हुए महिला खिलाड़ियों एवं उनके समर्थकों पर पुलिस दमन की भी सख़्त निंदा की गई। इस आयोजन में न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन द्वारा समकाल की आवाज़ शीर्षक के अंतर्गत सिरसा के तीन कवियों के प्रकाशित काव्य-संग्रहों ‘हरभगवान चावला: चयनित कविताएं’, ‘सुरेश बरनवाल: चयनित कविताएं’, वीरेंदर भाटिया: चयनित कविताएं’, के साथ-साथ परमानंद शास्त्री द्वारा फ़रज़न्द अली के पंजाबी उपन्यास ‘भुब्बल’ का हिंदी अनुवाद ‘राख होने से पहले’ व डा. कुलविंदर सिंह पदम द्वारा लिखित पंजाबी समीक्षा-संग्रह ‘स्वराजबीर दे नाटकी दृष्टिकोण’ को लोकार्पित किया गया। लोकार्पण उपरांत प्रो. हरभगवान चावला, सुरेश बरनवाल व वीरेंदर भाटिया द्वारा अपनी रचना-प्रक्रिया के साथ अपनी-अपनी चुनिंदा कवितायों की प्रस्तुति भी दी गई। प्रलेस हरियाणा के महासचिव डा. हरविंदर सिंह सिरसा ने लोकार्पित काव्य-संग्रहों की समीक्षात्मक विवेचना करते हुए कहा कि व्यक्ति के अस्तित्व, सामाजिक सरोकारों, औरत के अभिमान, देश के भविष्य और ज़िंदगी के असल वारिसों के साथ अपना सामंजस्य स्थापित करतीं प्रो. हरभगवान चावला, वीरेंदर भाटिया व सुरेश बरनवाल की यह कविताएं प्रगतिशील साहित्य सृजन की कसौटी पर ख़रा उतरते हुए समकाल की आवाज़ बनने में सक्षम हैं।

प्रो. हरभगवान चावला ने परमानंद शास्त्री द्वारा फ़रज़न्द अली के पंजाबी उपन्यास ‘भुब्बल’ के हिंदी अनुवाद ‘राख होने से पहले’ पर समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत करते हुए इसे हिंदी साहित्य जगत के लिए विशेष उपलब्धि बताया। उन्होंने कहा कि सुविख्यात पंजाबी उपन्यासकार पद्मश्री प्रो. गुरदयाल सिंह के उपन्यास ‘आहन’ (भर सरवर जब उछलै) व अंतरराष्ट्रीय ख्यातिनाम नाट्यनिर्देशक एवं नाटककार गुरशरण सिंह के प्रतिनिधि नाटकों के हिंदी में अनुवाद से अनुवाद के क्षेत्र में परमानंद शास्त्री पहले ही अपने हस्ताक्षर स्थापित कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि मूल पुस्तक के लेखक के साथ वैचारिक सामंजस्यता के बग़ैर ऐसा प्रभावी एवं सार्थक अनुवाद संभव नहीं हो सकता।

डा. गुरप्रीत सिंह सिंधरा ने डा. कुलविंदर सिंह पदम के समीक्षा-संग्रह ‘स्वराजबीर दे नाटकी दृष्टिकोण’ की समीक्षा करते हुए कहा कि डा. कुलविंदर सिंह पदम ने अपने इस समीक्षा-संग्रह से पाठकों को स्वराजबीर के नाटकीय दृष्टिकोण से अवगत करवाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी। कार्यक्रम का संचालन डा. शेर चंद ने किया व कार्यक्रम के समापन पर परमानंद शास्त्री ने सभी उपस्थितजन के प्रति प्रलेस सिरसा व प्रलेस हरियाणा की ओर से आभार व्यक्त किया।

इस अवसर पर भगवंत सिंह सेठी, अमनदीप सिंह अयाल्की एडवोकेट, प्रो. रूप देवगुण, राज कुमार निजात, परवीन बागला, डा. हररतन सिंह गाँधी, डा. दिलबाग सिंह विर्क, डा. मांगे सिंह, ज्ञान प्रकाश पीयूष, हरीश सेठी झिलमिल, लाज पुष्प, जोगिंदर सिंह मुक्ता, पूरन सिंह निराला, प्रो. बहादुर सिंह, महिंदर सिंह नागी, का. जगरूप सिंह चौबुर्जा, गुरतेज सिंह बराड़ एडवोकेट, रमेश शास्त्री, हीरा सिंह, सुरजीत सिंह रेणू , का. तिलक राज विनायक, विशाल वत्स, अनीश कुमार, हरजीत सिंह, मेजर शक्तिराज कौशिक, शील कौशिक, डा. हरविंदर कौर, छिंदर कौर सिरसा, सुमन कंबोज, ईशनजोत कौर, मुस्कान, प्रभप्रीत कौर, जसप्रीत कौर, गुरदीप कौर, कर्मजीत कौर, राज कौर, निशा, ज्योति, हरजीत कौर, राजदीप कौर, लवप्रीत संधु, उदय सिंह संधु, हरप्रीत सिंह, राजवीर सिंह, आशीष सेठी, रजनीश, गुरतेज सिंह, जनक राज, हरदेव सिंह, करनैल सिंह, कालू राम, नरेश कुमार, प्रदीप स्वामी, दलजीत सिंह, सुभाष चंद्र इत्यादि चिंतकों, बुद्धिजीवियों, लेखकों, सुहृदय पाठकों, विद्यार्थियों इत्यादि ने विशाल संख्या में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई।

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