कुछ चेहरे लेकर घर से निकलता हूँ…
कुछ चेहरे लेकरघर से निकलता हूँतुम्हे जो अच्छा लगता हैवो ही रंग निखरता है मेरे चहेरे का खुद का चहेरा भी नही दिखता मुझेआइना अक्सर देखता है चहेरा मेरा मेरे चेहरे की आदत हो गई हैतुम्हारी आँखों की तरह बदलने की चेहरों की भीड़ में कितने चहेरे हैऔर भीड़ का कोई अपना चहेरा नही हँसते रोते मुस्कराते उदास निराशपल पल …