कल्प वृक्ष सी वह उसे कभी खोना नहीं आतावह रख लेती है छुपा करखुद ही के टुकड़ेजोड़ लेती हैआड़े वक्त मेंबिखरी हिम्मतटूटे सपनेखाली बोतलेंकब्बाडी को बेचने लायक समानसहेज लेती हैअपनी बेटी की आंखों मेंअपने ख़्वाब फिर सेअपने बेटे की उंगली पकड़ करघूम आना चाहती हैअनदेखा संसारपरढलती उम्र मेंबहू को सौंप देती है बेटाऔर दामाद को बेटीऔर समेट लेती हैखुद को …

