मेरे अंदर मेरे जैसा कोई पलता है
हर पल उस के साथ मेरा युद्ध चलता है
झूठ की शतरंज पे मैं कोई चाल चलता हूँ
वो मेरा हमसाया बन कर
मुझको
रोकता है
टोकता है
तोड़ता है
जोड़ता है
बार बार उसका ख़याल खलता है ….
हैरान परेशान होकर
मेने उसको आजाद कर दिया
और सोच लिया
छोड़ो यार…..
ये तो
मेरा वहम
है अहम है
जो मेरी सोच को
तोलता है
मेरे खिलाफ
बोलता है
हूँ हनेरे विच
मैं गुनाह
करता हूँ
चहेरे से सच्चा लगता हूँ
अन्त हीन रास्तो पे
कोई
गीत गुनगनता है
साथ साथ हो कर भी नज़र नही आता है
मैं जनता हूँ
वो मरता है
मरता नही
डरता है
डरता नही
उसका कत्ल मेने कई बार किया है
आपने ही हाथो से ख्बाव में दफन किया है
फिर वो उग आता है
मेरे अंदर मेरे जैसा मेरा ही हमनाम ……..
मैं मेरी की धरा पे उसने मुझे कई बार हराया है
मैं और वो कभी एक नही हो सके
एक ही शरीर में रह कर
इक ही घर में बैठ कर
कर्म के कुरुक्षेत्र
में जब मौत की घड़ी आएगी
आप देखना मैं आपके पास रहूँगा
और वो उड़ान भरेगा ……
आप भी कहेगे अच्छा था बुरा था
वो पाक पवित्र हो कर अंतिम संस्कार में नही जलेगा
बल्कि
दूर खड़ा होकर मुस्करायेगा
मेरा जैसा मेरा ही हम नाम होकर
भी मेरा नही होगा …….?shaad
(शीर्षक……मैं मेरी……..
वैसे ही ख़याल आ गया लिख दिया)
Sachdeva
April 28, 2022 at 7:09 am
Very Good