इक तारा लेकर रेल गाड़ी में गाते देखा था उसको और नंगे पांव फ़टे कपड़े दाड़ी बड़ी हुई और काली सी चादर पैसो के लिए बढ़ते हाथ उसकी आवाज में जादू था जो आज भी गूँजता इतने वर्ष बीत जाने के बाद …
रेल गाड़ी में मेरे साथ बैठे कुछ यात्रियों ने सिक्के फ़टे पुराने नोट उसकी हथेली में थमा दिए और कुछ ने कहा कमाते क्यों नही धंधा बना रखा है साहब उसके चहेरे क भाव बदले नही बल्कि मुस्कान दिखाई दे रही थी उसने सिर्फ मेरी तरफ मुस्कान दी जैसे समझ गया हो
की मैं कुछ उसके बारे में समझ रहा हूँ
और उसने गीत गाना शुरू किया मेने कुछ पैसे खुले देख कर बढ़ाये तो उसने गीत बन्द करके कहा अरे नही बाबू आज बहुत है शाम की रोटी के लिए गीत तो आपकी मुस्कान के लिए था ……….
और वो गाड़ी से उत्तर गया
मैं कभी अपने पैसो की तरफ देखता रहा कभी उसे दूर तक जाते हुए और कभी उन लोगो के चहेरे की तरफ जिन्होंने कहा था धंधा है जनाब और कुछ भी नही
फिर स्टेशन पे गाड़ी खाली हो गई और हम सब आपने-2धंधो में खो गए ।।
अगले दिन सवेरे सवेरे गाड़ी में वापिस जाने को बैठा ही था की प्लेटफार्म पे खड़ी दूसरी गाड़ी से उसके गाने की आवाज आई “आदमी मुसाफिर है आता है जाता है …….मैं दौड़ के उसकी तरह जाने लगा तो गाड़ी चल पड़ी …..मेरे हाथ में कल वाले सिक्के थे एक एक रूपये के …..अपनी सीट पे बैठ गया तो ख़याल आया की हर सुबह भूख लगती है और हर रोज धंधा होता है और……..कुछ धंधे भूख मिटाते है और कुछ भूख बढ़ाते है………………Sanjivv Shaad
ज़िन्दगी ज़िंदाबाद ।।
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