
कोई तो है भीतर ….
जो गाने लगता है मुस्कराने लगता है गुस्सा कर लेता है
कोई तो है जिसकी पसन्द बदलती रहती है जो सोचता है और बहक जाता है कोई तो है दूर तक कल्पना के पंखों पे सवार होकर यात्रा करता है कोई तो है जो पद प्रतिष्ठा की लालसा पैदा कर देता मिटता नही बार बार ताजा हो कर भीतर ही भीतर जन्म लेता है और नाचता है कोई तो है जो स्वार्थ लालसा काम क्रोध मोह लाभ हानि अहंकार की जीवन रूपी कलेंडर में तारीख बदलता है कोई तो है जो सफर करता है सोचता हूँ वो मैं तो नही हूँ …क्योकि मुझे ये सब अनुभव होता है शायद हर किसी को पता होता है गलत क्या है ठीक क्या है दिन क्या रात क्या है मौसम क्या है ……
पाँच तत्व ही तो है मुझ में जिसे (मैं )कहते है और तू तक का सफर तह करना है तू ही तू होकर पाँच तत्व में मिल जाना है तुझ में खो जाना है तेरा हो जाना है जिसको कभी देखा नही सुना नही समझा नही …. जिंदगी जिंदाबाद
Sanjiv Shaad