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बेटी…..

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पापा देखो
मैं इक कदम पे हूँ
अभी दूसरा कदम नही रखा है मैंने
जानते हो
दूसरा कदम ज़मीन पे लगते ही
लोग आउट आउट बोलने लगते है
पापा……क्यों सबको मेरा दूसरा क़दम इतना नागवार है
क्यों सब मुझे एक क़दम पर ही देखना चाहते हैं
पापा….ज़िन्दगी का नाम दौड़ना है
रेंगना नहीँ……
पापा मुझे रेंगना नहीं दौड़ना है…
उड़ना है ……………….सपनों के पंख लगाकर देखना इक दिन
आप का नाम लिख दूंगी सम्मान के आकाश पर
ऐड बेड का
खेल ही है तो ज़िन्दगी
कूद कूद कर पार कर जाऊँगी
और जीत लूँगी
एक सम्मान
पर
पापा
क्यों मेरे हर कदम की ताकीद करने वाली दुनिया आपने लिए
सारी आजादी रखती है ।।
(मेरे मित्र बलजिंदर रीत के अमूल्य सहयोग से कुछ पक्तियाँ)

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