नक्शा उठा के देखा तो सिर्फलकीरो के इलावा कुछ न थाहर कदम पे धरती बंटी हुईदीवारो के इलावा कुछ न था…..लौट आओ इक आवाज थी बसपेड़ जंगल में थे सलीब जैसेमगर घर का मेरे बस पता गुम था……मैं जिन्दा था और वो इक पथर थादहलीज थी उसकी और मेरा सिर थाइतफ़ाक देख आशीर्वाद तो था उसकामगर मेरे सिर पे जो …