Home updates घरफूंक थियेटर फेस्टिवल : “होरी” ने दी गरीब किसान की पीड़ा को मार्मिक अभिव्यक्ति

घरफूंक थियेटर फेस्टिवल : “होरी” ने दी गरीब किसान की पीड़ा को मार्मिक अभिव्यक्ति

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रोहतक, 4 अप्रैल। सप्तक रंगमंडल और पठानिया वर्ल्ड कैम्पस के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित घरफूंक थियेटर फेस्टिवल में इस बार मशहूर कहानीकार प्रेमचंद के चर्चित उपन्यास गोदान पर आधारित होरी नाटक का मंचन किया गया।

ब्लैक पर्ल्स आर्ट्स दिल्ली के कलाकारों द्वारा अभिनीत इस नाटक का लेखन विष्णु प्रभाकर ने एवं निर्देशन राघव कुमार ने किया। महिला एवं बाल विकास सोसाइटी हरियाणा की पूर्व उपाध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा की पत्नी आशा हुड्डा ने कलाकारों को पौधा देकर सम्मानित किया। पूरे समय कार्यक्रम में उपस्थित रहीं श्रीमती हुड्डा ने बेहतरीन प्रस्तुति के लिए कलाकारों की सराहना करने के साथ-साथ शहरवासियों के लिए हर सप्ताह मुफ्त नाटक का आयोजन करने के लिए सप्तक के अध्यक्ष विश्वदीपक त्रिखा का भी आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि वे जब भी रोहतक में होंगी, इस कार्यक्रम में अवश्य आएंगी। इस मौके पर उन्होंने जाने-माने आर्टिस्ट पवन मल्होत्रा और अभिनव टोली के जगदीप जुगनू व उनकी टीम को भी सम्मानित किया।

बता दें कि नाटक का मुख्य पात्र होरी ज़िंदगी भर बेबसी का जीवन जीता है और अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए संघर्ष करता रहता है। वह लगातार कष्ट सहकर भी सबको खुश रखने की भरसक कोशिशें करता है। इसके बावजूद वह अपनी गरिमा की रक्षा नहीं कर पाता। नाटक की कहानी वैसे तो बनारस के किसी पिछड़े गांव की है, मगर उनकी परिस्थितियां उन्हे किसी एक प्रांत में बांध कर नहीं रखती। होरी भारत के किसी भी कोने का छोटा किसान हो सकता है। नाटक किसान की ज़िंदगी को दर्शाने के साथ-साथ एक परिवार के निजी रिश्तों को भी बहुत ही सटीक तरीके से समझाता है। नाटक में होरी अपने मन की एक लालसा का वर्णन करता है कि उसके घर में भी एक गाए बंधे। कुछ जुगाड़ करके वह गाय ले भी आता है लेकिन परिवार की यह खुशी ज्यादा देर नहीं टिकती। गाए की अकाल मृत्यु हो जाती है, जो होरी व उसकी पत्नी धनिया को बहुत आघात पहुंचाती है। जैसे कोई सपना पूरा होते होते रह गया हो। होरी और धनिया की ज़िंदगी तब और कठिन हो जाती है जब उनका बेटा गोबर, झुनिया को गर्भवती करके काम करने के लिए शहर भाग जाता है। उस पर, पंचायत का लगाया दंड और भोला का बैल खोलकर ले जाना उन्हें बाद से बदहाल कर देता है। आखिर में ज़्यादा काम करने की वजह से होरी बीमार पड़ जाता है और अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाती है। होरी की मौत का दृश्य और इस नाटक का अंत दर्शकों के सामने किसान की दुर्दशा के बारे में एक गंभीर सवाल खड़ा कर देता है। बहुत ही सटीक तरीके से इस्तेमाल किए गए व्यंग्य और कलाकारों की बेहतरी अदाकारी ने इस प्रस्तुति को खास बना दिया। नाटक में लोक गीतों का खूबसूरत तरीके से इस्तेमाल किया गया जिनसे इसकी प्रभावशीलता और बढ़ गई। नाटक ने दर्शकों को कई बार रोने पर मजबूर किया। होरी की भूमिका में अर्चित मलकोटी और धनिया की भूमिका में प्रीति ने अपने जीवंत अभिनय से बेहद प्रभावित किया। अन्य कलाकारों में सचिन किरोड़ीवाल, नेहा बंसल, श्रुतिका, अमृता, सौरभ, सागर, युवराज, मनीष, वीर गहलौत, अभिमन्यु, वैभव, साहिल, अनिकेश और विकास ने भी अपने किरदारों के साथ भरपूर न्याय किया। देवांश वर्मा के संगीत ने सबको बांधे रखा। मेकअप सिमरन सिंह और मनीष का रहा। मंच की व्यवस्था ध्रुव यादव ने संभाली। इस अवसर पर आशा हुड्डा, भक्त फूलसिंह विश्वविद्यालय की रजिस्ट्रार कविता शर्मा, खुशबू मल्होत्रा, मोनू, पवन मल्होत्रा, इंदरजीत सिंह भयाना, यशपाल छाबड़ा, डॉ. आर एस दहिया, हंसा रानी, टिका राम, डॉ. एस जेड एच नकवी, अनिल सैनी, सप्तक के अध्यक्ष विश्व दीपक त्रिखा, सचिव अविनाश सैनी, सुजाता, यतिन वधवा, विकास रोहिल्ला, डॉ. हरीश वशिष्ठ, डॉ. सुरेंद्र शर्मा, जगदीप जुगनू, रवि रविन्द्र, रिंकी बत्रा, महक कथूरिया, राहुल सहित अनेक नाट्यप्रेमी उपस्थित रहे।

 

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