
तिरंगा मतबल देश की शान बान और आन. तिरंगे कितना महत्वपूर्ण है ये एक भारतीय बखूबी जानता है| कम ही लोग जानते हैं कि तिरंगे को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के भटाला पेनमरू गांव में पिंगली वेंकैया नामक शख्स ने डिजाइन किया था| आज उनके जन्मदिन के अवसर पर एचपीस सीनियर सेकन्डेरी स्कूल में उन्हे एक साधरण कार्यक्रम के द्वार याद किया गया और विद्यालय निदेशक एवं प्रिंसिपल आचार्य रमेश सचदेवा ने तिरंगे के बनाने में उनके योगदान की जानकारी दी|
उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा भटाला पेनमरू और मछलीपट्टनम से प्राप्त की थी। जिसके बाद युवावस्था में वह मुंबई चले गए थे। युवा पिंगली ने वहां जाने के बाद ब्रिटिश इंडियन आर्मी में नौकरी करनी शुरू कर दिया, जहां से उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेज दिया गया था। जहां उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में हुए एंग्लो-बोअर युद्ध में भी बढ़चढ़ भाग लिया था। इसी दौरान उनकी महात्मा गांधी से भी मुलाकात हुई और उन्होंने अपने अलग राष्ट्रध्वज होने की बात कही जो गांधीजी को भी पसंद आई।
महात्मा गांधी से भेंट होने पर बापू की विचारधारा का उन पर काफी प्रभाव पड़ा। वहीं बापू ने उन्हें राष्ट्रध्वज डिजाइन करने का काम सौंपा दिया। जिसके चलते वह स्वदेश लौट आए और इस पर काम शुरू कर दिया। ऐसे इस बीच उन्होंने कुछ दिन रेलवे में गार्ड की नौकरी भी की। मगर बहुत जल्द यह नौकरी भी छोड़कर वह मद्रास में प्लेग बीमारी के निर्मूलन को लेकर सरकारी अधिकारी के तौर पर कार्य करने लगे थे। पिंगली वेंकैया ने लगभग 5 सालों के गहन अध्ययन के बाद तिरंगे का डिजाइन तैयार किया था। दरअसल वह ऐसा ध्वज बनाना चाहते थे जो पूरे राष्ट्र को एक सूत्र पर बांधे रखे। जिसमें उनका सहयोग एस.बी.बोमान और उमर सोमानी ने दिया और उन्होंने मिलकर नैशनल फ्लैग मिशन का गठन किया।
इस बारे में जब उन्होंने गांधीजी की राय जाननी चाही तो उन्होंने ध्वज के बीच में अशोक चक्र रखने की सलाह दी जो पूरे राष्ट्र की एकता का प्रतीक है। पिंगली वेंकैया ने पहले हरे और लाल रंग के इस्तेमाल से झंडा तैयार किया था, मगर गांधीजी को इसमें संपूर्ण राष्ट्र की एकता की झलक नहीं दिखाई दी और फिर ध्वज में रंग को लेकर काफी विचार-विमर्श होने शुरू हो गए। अंततः साल 1931 में कराची कांग्रेस कमेटी की बैठक में उन्होंने ऐसा ध्वज पेश किया जिसमें बीच में अशोक चक्र के साथ केसरिया, सफेद और हरे रंग का इस्तेमाल किया गया और इसे तत्काल आधिकारिक तौर पर सहमति प्राप्त हो गई।
यह स्वतंत्रता सेनानियों में ‘स्वराज्य ध्वज’ के तौर पर काफी लोकप्रिय हुआ। इसी ध्वज के तले कई आंदोलन लड़े गए और आखिरकार 1947 में अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया।
आजादी के बाद जब राष्ट्रध्वज पर मुहर लगने को लेकर चर्चा शुरू हुई तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई गई और तीन सप्ताह बाद 14 अगस्त को उनके द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप पर मान्यता देने की सिफारिश पेश हुई। जिसे सर्वसम्मति से मान लिया गया और 15 अगस्त 1947 से तिरंगा हमारे देश की पहचान बन गया। इस अवसर पर पिंगली वेंकैया के जीवन पर एक डाक्यूमेंटरी भी दिखाई गई|
विशेष
पिंगली ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा खेती से जुड़े रिसर्च में भी लगाया और इस दौरान उन्होंने कंबोडिया कॉटन की खोज की इस खोज के बाद उनका नाम पट्टी (कॉटन/रूई) वेंकैया पड़ गया। हालांकि, उन्होंने देश को झंडा दिया और आजादी की लड़ाई में शामिल रहे लेकिन उन्होंने अपना जीवन गरीबी में गुज़ार दिया। 1963 में जब पिंगली का देहान्त हुआ तब भी पूरे परिवार की हालत ऐसी थी कि उन्हें एक-दूसरे के ठिकानों तक का पता नहीं था।
RAMESH SACHDEVA
(Principal)
HPS SENIOR SECONDARY SCHOOL,
SHERGARH (M.DABWALI)-125104
DIST. SIRSA (HARYANA) – INDIA
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