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अकेला न समझ मुझे…

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अकेला ना समझ तू मुझे
मेरे साथ इक आत्म विशवास चलता है
आम आदमी हूँ
इसलिए मेरा आंधियो में भी चिराग जलता है
तेरी सल्तनत तो पलभर का तमाशा है
मेरा तो धरती पे मित्रो के साथ हर रोज दरवार लगता है

डर नहीं है मुझे ….
मैं
बेखोफ हूँ
सेहरा नहीं है सर पे …..मेरे
बस इक कफन सजता है
रोयेगे नहीं करेगे बाते
मरने के बाद भी लोग
बंजर धरा के गर्भ से भी कभी कभीं
कोई गुलाब महकता है
कलम है
और कुछ कागज
या अनकहे अल्फाज
या मेरे
नाटक के कुछ पात्र
और
विचार
के साथ
“तहजीब है की
मै सिर्फ
कविता नाटक गजल ही लिखता हूँ
और गीत गुनगुनाता हूँ…….इंकलाब के लिए ज़िंदाबाद बन जाते है आप जैसे दर्शक
मेरे मार्गदर्शन के लिए ……..@shaad
(मेरे नाटक तिनका का एक डायलॉग..)

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