
?वही प्रज्ञावान है, जो इस सारी क्षणभंगुरता की धारा के पीछे समभाव से स्थित शाश्वत को देख लेता है।?
रात है, दिन है। ऐसे ही प्रेम है और घृणा है। आकर्षण है और विकर्षण है। आदर है और अनादर है।
हमारी सारी तकलीफ यह होती है कि अगर किसी व्यक्ति के प्रति हमारा आदर है, तो हम कोशिश करते हैं, सतत बना रहे। वह बना रह नहीं सकता। क्योंकि आदर के साथ वैसे ही रात भी जुड़ी है अनादर की। और प्रेम के साथ घृणा की रात जुड़ी है।
और सभी चीजें बहती हुई हैं, प्रवाह है। यहां कोई चीज थिर नहीं है। इसलिए जब भी आप किसी चीज को थिर करने की कोशिश करते हैं, तभी आप मुसीबत में पड़ जाते हैं। लेकिन कोशिश आप इसीलिए करते हैं कि आपको भरोसा है कि शायद चीजें थिर हो जाएं।
जवान आदमी जवान बने रहने की कोशिश करता है। सुंदर आदमी सुंदर बने रहने की कोशिश करता है। जो किसी पद पर है, वह पद पर बने रहने की कोशिश करता है। जिसके पास धन है, वह धनी बने रहने की कोशिश करता है। हम सब कोशिश में लगे हैं।
हमारे अगर जीवन के प्रयास को एक शब्द में कहा जाए, तो वह यह है कि जीवन है परिवर्तनशील और हम कोशिश में लगे हैं कि यहां कुछ शाश्वत मिल जाए। कुछ शाश्वत। इस परिवर्तनशील प्रवाह में हम कहीं पैर रखने को कोई भूमि पा जाएं, जो बदलती नहीं है। क्योंकि बदलाहट से बड़ा डर लगता है। कल का कोई भरोसा नहीं है। क्या होगा, क्या नहीं होगा, सब अनजान मालूम होता है। और अंधेरे में बहे चले जाते हैं। इसलिए हम सब चाहते हैं कोई ठोस भूमि, कोई आधार, जिस पर हम खड़े हो जाएं, सुरक्षित। सिक्योरिटी मिल जाए यह हमारी चेष्टा है। यह चेष्टा बताती है कि हमें क्षणभंगुरता दिखाई नहीं पड़ती।
हमारा प्रेम, हमारी श्रद्धा, हमारा आदर, हमारे सब भाव मिट जाते हैं, धूल—धूसरित हो जाते हैं। हमारे सब भवन गिर जाते हैं। हम कितने ही मजबूत पत्थर लगाएं, हमारे सब भवन खंडहर हो जाते हैं। हम जो भी बनाते हैं इस जिंदगी में, वह सब जिंदगी मिटा देती है। कुछ बचता नहीं। सब राख हो जाता है। लेकिन फिर भी हम स्थिर को बनाने की कोशिश करते रहते हैं, और असफल होते रहते हैं। हमारे जीवन का विषाद यही है
संबंध चाहते हैं स्थिर बना लें। वे नहीं बन पाते। हमने कितनी कोशिश की है कि पति—पत्नी का प्रेम स्थिर हो जाए, वह नहीं हो पाता। बड़ा विषाद है, बड़ा दुख है, बड़ी पीड़ा है। कुछ स्थिर नहीं हो पाता। मित्रता स्थिर हो जाए शाश्वत हो जाए। कहानियों में होती है। जिंदगी में नहीं हो पाती।
☘️?☘️ओशो☘️?☘️
गीता दर्शन–(भाग–6) प्रवचन–160
कौन है आँख वाला—(प्रवचन—दसवां)