Home updates आदमी…….

आदमी…….

2 second read
0
0
1

आदमी
तुम कहाँ  हो  रूप  रंग और नकाब
पहन कर भीड़ में गुम
या
घर और बहार के अलग किरदारों में रिश्तो नातों
में  हर वक्त हर शतरंज के मोहरे बन के
बे शुमार आदमियों की भीड़ में
तन्हा है हर आदमी
अर्थो और शब्दों
के जंगल में मौन
विचारो की चीख के बीच
गूंगा है हर आदमी
करना कुछ कहना कुछ चाहता है
आदमी
खुद को बेचता खुद को खरीदता
और
बस धीरे धीरे बजार होता हर आदमी
बस तुम कहा हो
आदमी
शायद इस लिए खुद को समझदार समझ के
भूलता है खुद को ही
आदमी …………………..?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

आदमी…….

2 second read
0
0
0

आदमी
तुम कहाँ  हो  रूप  रंग और नकाब
पहन कर भीड़ में गुम
या
घर और बहार के अलग किरदारों में रिश्तो नातों
में  हर वक्त हर शतरंज के मोहरे बन के
बे शुमार आदमियों की भीड़ में
तन्हा है हर आदमी
अर्थो और शब्दों
के जंगल में मौन
विचारो की चीख के बीच
गूंगा है हर आदमी
करना कुछ कहना कुछ चाहता है
आदमी
खुद को बेचता खुद को खरीदता
और
बस धीरे धीरे बजार होता हर आदमी
बस तुम कहा हो
आदमी
शायद इस लिए खुद को समझदार समझ के
भूलता है खुद को ही
आदमी …………………..?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

Epaper 13 August 2021