Home updates कान की कोई आँख नही होती….

कान की कोई आँख नही होती….

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मैं इस पार हूँ
तू उस पार
पास पास रह कर भी है
है हम दोनों में इक दीवार
दीवार 
सब को दिखाई नही देती है
लेकिन
दीवारो के भी कान होते है
जो कच्चे है
सिर्फ सुनते है
ये तकसीम सी ज़िन्दगी
हिसाब की कोई किताब है
जो खुल जाती है यकायक
बस सबको सबका हिस्सा
और ब्याज
मिलता रहे तो
दीवार में इक खिड़की
की उम्मीद है
नही
तो बड़ी होती रहती
ये
दीवार
जो दिखाई नही देती
पास पास रहकर भी
और हम सुनते रहते है कान लगा कर
हर बात ……
और
कान की कोई आँख नही होती…..Shaad

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कान की कोई आँख नही होती….

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मैं इस पार हूँ
तू उस पार
पास पास रह कर भी है
है हम दोनों में इक दीवार
दीवार 
सब को दिखाई नही देती है
लेकिन
दीवारो के भी कान होते है
जो कच्चे है
सिर्फ सुनते है
ये तकसीम सी ज़िन्दगी
हिसाब की कोई किताब है
जो खुल जाती है यकायक
बस सबको सबका हिस्सा
और ब्याज
मिलता रहे तो
दीवार में इक खिड़की
की उम्मीद है
नही
तो बड़ी होती रहती
ये
दीवार
जो दिखाई नही देती
पास पास रहकर भी
और हम सुनते रहते है कान लगा कर
हर बात ……
और
कान की कोई आँख नही होती…..Shaad

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