दीवार पे लटके कलण्डर पे आज 23 दिसम्बर है 19 वर्ष पहले भी 23 दिसम्बर था उस दिन रंगमच पे उतरा था नन्हे कलाकारों का इक काफिला सपने ले के ……मेरे शहर डबवाली में
तालियों और संगीत के महारंग महोत्सव में आग ने तांडव मचा दिया जीवन रूपी नाटक का पर्दा गिर गया
कैसा निर्देशक है तू कभी कभी तेरी पटकथा समझ में नहीं आती बस हम तो मात्र कठपुतलियां है तेरे हाथ की
लेकिन
शब्द नही है मेरे पास कुछ भी लिखने को हिम्मत नहीं है
बस है तो मौन और तेज चलती साँसे और नम आँखे …………
वो तो
आज भी ज़िन्दा है ….उस दिन के कलाकार रंगकर्मी और दर्शक हमारी श्रदा और हमारी याद में …….
कैलन्डर की इक तारीख 23 दिसम्बर…
दीवार पे लटके कलण्डर पे आज 23 दिसम्बर है 19 वर्ष पहले भी 23 दिसम्बर था उस दिन रंगमच पे उतरा था नन्हे कलाकारों का इक काफिला सपने ले के ……मेरे शहर डबवाली में
तालियों और संगीत के महारंग महोत्सव में आग ने तांडव मचा दिया जीवन रूपी नाटक का पर्दा गिर गया
कैसा निर्देशक है तू कभी कभी तेरी पटकथा समझ में नहीं आती बस हम तो मात्र कठपुतलियां है तेरे हाथ की
लेकिन
शब्द नही है मेरे पास कुछ भी लिखने को हिम्मत नहीं है
बस है तो मौन और तेज चलती साँसे और नम आँखे …………
वो तो
आज भी ज़िन्दा है ….उस दिन के कलाकार रंगकर्मी और दर्शक हमारी श्रदा और हमारी याद में …….