धरती
आकाश पानी हवा आग और ……..तू
मे
मैं भी हूँ
और इक रिश्ता है
उड़ने को पर है
पर
पैरो में जंजीर है
हर कोई
कैद है
लकीरो में………
सिर्फ मौन
और खमोश
लम्बी साँस
और
अंदर चलते
बे अर्थ शब्द
इक यात्रा तय करते है
और
चल पड़ते है कदम
और
इक दिन
वो
भी खत्म हो जाती है
फिर लोग
इस नतीजे पे पहुँचते है
अच्छा था बुरा था
तब मैं नही रहता
रहता है
तू
धरती
और आकाश ……….हवा पानी और आग ।।