कैसी लगी ये दिल लगी…….
………………..प्रेमशब्द ……………
इक मुकमल अल्फाज है विशवास है संस्कार है
और नगद नही
उधार है
सौदा सस्ता है
और कहते है
ढ़ाही आखर प्रेम के पढे सो…………….
दिल के जज्बात है
अधूरे ख्बाव है
बिन शब्दों के ख़याल है
बंजर
जमी पे उग आये फूल उम्मीदों के
और सपनो की उड़ान है
मौन है
वो पल वो लम्हा
जब उसकी याद है
तभी तो इक फरियाद है
इश्क
प्रेम महोबत
जो शक्ल देख कर करते है
उनके लिए सिर्फ इक व्यपार है
प्रेम तो बस इबादत है जिसमे सिर्फ लुटाना होता है
खो जाना होता है हो जाना होता
शीश हथेली पे रख के
आना होता है और
दिल का कोई दिमाग नही होता
प्रेम भी उससे करता है
जिसे कभी देखा ही
नही…. और वो कही का नही रहता
चल पड़ा हूँ रास्तो पे
तू ही बता अब वो लोग कहा मिलेगे जो
कही के नही रहते ।।