मैं
ख़याल
से ख्बाव और फिर
मन
के सवाल
और जबाव सिर्फ खंजर
पैर खानाबदोश
दिल में उम्मीद
जिंदगी पे रोना
और मौत पे हँसना
कुछ अनकहे अल्फाज
सफेद कागज
मुक्ति का गीत
जन्म की कमान से निकला हुआ तीर
घरती पे अग्नि की चादर
और जलती हुई जीवन की कथा
जो तुम नही समझ सकते और मैं
लिख नही सकता ……
आपने कन्धों पे
आपने ही सिर का भार
ढो रहा हूँ
आपने आप को खुद इक
मजदूर बना कर
बस वो जंग
जो खुद के भीतर है
कितने हिस्सों में अलग थलग
मैं उसका इक नाम हूँ
जनाब………
हाज़िर होकर भी गैरहाजिर
दिखने वाला …..मैं
तुम
जैसा ही
मुक्कमल
इंसान हूँ………shaad
2 Comments
मुकम्मल इंसान
मैं
ख़याल
से ख्बाव और फिर
मन
के सवाल
और जबाव सिर्फ खंजर
पैर खानाबदोश
दिल में उम्मीद
जिंदगी पे रोना
और मौत पे हँसना
कुछ अनकहे अल्फाज
सफेद कागज
मुक्ति का गीत
जन्म की कमान से निकला हुआ तीर
घरती पे अग्नि की चादर
और जलती हुई जीवन की कथा
जो तुम नही समझ सकते और मैं
लिख नही सकता ……
आपने कन्धों पे
आपने ही सिर का भार
ढो रहा हूँ
आपने आप को खुद इक
मजदूर बना कर
बस वो जंग
जो खुद के भीतर है
कितने हिस्सों में अलग थलग
मैं उसका इक नाम हूँ
जनाब………
हाज़िर होकर भी गैरहाजिर
दिखने वाला …..मैं
तुम
जैसा ही
मुक्कमल
इंसान हूँ………shaad
दिलबागसिंह विर्क
August 19, 2015 at 3:14 pm
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20 – 08 – 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा – 2073 में दिया जाएगा
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
August 19, 2015 at 3:14 pm
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20 – 08 – 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा – 2073 में दिया जाएगा
धन्यवाद