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मैं वो और कैनवस…..

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आपने आपने हिस्से की
जिंदगी
और
फुर्सत के पल
सपना …
तारा….
रंग…
चाँद………और नदी का कनारा
अक्सर
कही खो सा जाता है या वो घड़ी वो पल
जब मैं और वो …………वो नही रहते
हो जाते है
तू से तुम और तुम से आप
बाज़ार
दफ्तर चुल्ला चोंका या फिर सिर्फ इक रिश्ता ……
और  किनारो से टूटता पानी
और  भीड़
पर फिर भी
कभी कभी  हम
ज़िन्दगी के रूबरू
होते है  जब
घर पे किसी कोने में
पड़े कैनवस पे रंग उबरते है
तब होता है हम दोनों के बीच
मौन
इज़हार
वक्त
और या
सिर्फ इतवार……………………
फिर सोमवार
दीवार पे लटकी घड़ी
मै और वो
सिर्फ
इक वस्तु
और इंतज़ार करता …………घर

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आपने आपने हिस्से की
जिंदगी
और
फुर्सत के पल
सपना …
तारा….
रंग…
चाँद………और नदी का कनारा
अक्सर
कही खो सा जाता है या वो घड़ी वो पल
जब मैं और वो …………वो नही रहते
हो जाते है
तू से तुम और तुम से आप
बाज़ार
दफ्तर चुल्ला चोंका या फिर सिर्फ इक रिश्ता ……
और  किनारो से टूटता पानी
और  भीड़
पर फिर भी
कभी कभी  हम
ज़िन्दगी के रूबरू
होते है  जब
घर पे किसी कोने में
पड़े कैनवस पे रंग उबरते है
तब होता है हम दोनों के बीच
मौन
इज़हार
वक्त
और या
सिर्फ इतवार……………………
फिर सोमवार
दीवार पे लटकी घड़ी
मै और वो
सिर्फ
इक वस्तु
और इंतज़ार करता …………घर

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