वो रात……….
चाँद भी था तारे भी थे
मगर खमोश दहशत में चुपचाप
अशांत ……
चमकती तलवार
सिसकते आँसू
भागते कदम
डरते चेहरे
लूट
डकैत
चोरी सीन जोरी
बैल गाड़ी से रेलगाड़ी
तक का सफर
और
रिश्तों के बदलते
ख्याल
टूटते ख्बाव
सिर पे पेड़ …….पर ग़ुम छाँव
नाख़ून और मास का टूटता विशवास जब डूबता सूरज भी
ठंडा होकर भीगी हवाओ के साथ बैठ के रोया था है अपना घर छोड़ के छुप छुप के
आपने वतन आये थे आधे अधूरे……
नही भूलती 14 अगस्त की रात
आधी रात को हुआ था मुल्क आजाद
बस सवेर् का इंतजार…….
जब हमने ली थी
गहरी लम्बी साँस………
वो रात..
वो रात……….
चाँद भी था तारे भी थे
मगर खमोश दहशत में चुपचाप
अशांत ……
चमकती तलवार
सिसकते आँसू
भागते कदम
डरते चेहरे
लूट
डकैत
चोरी सीन जोरी
बैल गाड़ी से रेलगाड़ी
तक का सफर
और
रिश्तों के बदलते
ख्याल
टूटते ख्बाव
सिर पे पेड़ …….पर ग़ुम छाँव
नाख़ून और मास का टूटता विशवास जब डूबता सूरज भी
ठंडा होकर भीगी हवाओ के साथ बैठ के रोया था है अपना घर छोड़ के छुप छुप के
आपने वतन आये थे आधे अधूरे……
नही भूलती 14 अगस्त की रात
आधी रात को हुआ था मुल्क आजाद
बस सवेर् का इंतजार…….
जब हमने ली थी
गहरी लम्बी साँस………