31 दिसम्बर …………..
हर महीने मैं दीवार पे लगे कैलेण्डर में महीनो को फाड़ देता हूँ और मेरे सामने होता है इक नया महीना और आज है सामने है नया वर्ष
और मेरा हाथ रुक गया नही फाड़ा मैंने दिसम्बर महीने को
ये सोच के वक्त तारीखों और साल के हिसाब से नहीं बदलता बल्कि कर्म और नियत के साथ बदलता है
और वक्त चलता रहता
ना जाने कब कहाँ वक्त का बदले मिज़ाज़ ……
और
घर की दीवार पे लटकी घड़ी चल रही है
और मै बीत रहा हूँ
कोई तो…………………………है
जो मेरे जीवन रूपी कैलन्डर में से दिन महीने रात और साल फाड़ रहा है और मुस्कराकर मुझ से ही कह रहा है
“नया साल मुबारक “
बस
मैं साफ नियत से जिंदगी और रंगमंच के प्रति आपन दायत्व निभाने की कोशिश करता रहता हूँ क्योकि
show must go on
और मैं बीते हुए कल में आज में और आने वाले कल में भी याद रहूँ आबाद रहूँ और बस………..shaad रहूँ ।।