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कविता दिल से……

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वो अकेला जा रहा था
उसके पास कुछ भी
नही था
बस कुछ किस्से  कुछ कहानियाँ थी
और खाली हाथ
सुनसान सड़क पे
उस ने  बोला था इक दिन मुझ से
और कितनी भी बचत कर लो आखिर
बचता भी क्या है
ढेर भर राख
कुछ हड्डिया
पानी में बहाने के लिए
और चार दिन
संस्कार
घर की दीवार पे लटका चित्र
और उस पर कागज के फूलो
का हार ……….
उसके जाने के बाद मेने उसकी डायरी पढ़ी
अलमारी से निकाल कर ……
उसमे कुछ गजले कवितायेँ और गीत मुस्करा रहे थे …….फिर मैने दीवार से उसकी फोटो उतार दी
क्योकि
वो आज भी ज़िंदा है
मेरे अंग सग  मेरी कलम में मेरे शब्दों में मेरे अर्थो में और………..रोज मिलता है
डायरी में ………उसके आखरी कविता में लिखा था जिंदगी को समझना है तो कविताएँ गीत गजल पढ़ा करो
और जिंदगी के बाद जीने का हुनर लेना है तो
गीत गजल कहानियाँ
लिखा करो…………Sanjivv Shaad

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