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लेखक कभी जलावतन नहीं होता: डा. सिरसा

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‘समकाल व पंजाबी साहित्य’ विषय पर हुआ राष्ट्रीय सेमिनार
सिरसा: 29 अक्तूबर:
समाज को लेखक से हर हाल में आम आवाम की आशाओं आकाँक्षाओं को ज़ुबाँ प्रदान करते रहने की उम्मीद सदैव बनी रहती है इसलिए संकट के हर दौर में लेखकों को समाज की इस उम्मीद पर ख़रा उतरना ही चाहिए। प्रतिशोध के आतंक से यदि कभी समाज गूंगा बहरा हो भी जाए तो उसे जगाने के लिए व्यवस्था के प्रतिरोध स्वरूप लेखक की चीख़ अनिवार्य है।

लेखक को हर हालात में आम आवाम के सरोकारों के प्रति प्रतिबद्ध रहना चाहिए इसलिए लेखक ज़ुल्मात के दौर में भी कभी जलावतन नहीं होता और अपने लोगों के साथ खड़ा रहता है। यह विचार अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) के महासचिव डा. सुखदेव सिंह सिरसा ने पंजाबी साहित्य अकाडमी, लुधियाना की ओर से पंजाबी लेखक सभा, सिरसा के सहयोग से पंचायत भवन, सिरसा में ‘समकाल और पंजाबी साहित्य’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में मुख्य वक्ता के तौर पर अपने वक्तव्य में व्यक्त किए।

समकाल में लेखक की सामाजिक जवाबदेही को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि ईडी और बुलडोज़र के इस दौर में भी लेखकों ने लिखना बंद नहीं किया है। उन्होंने सिख गुरुजन, नेरुदा, लोर्का, ब्रेख्त, महमूद दरवेश, निखिल सुचान, सलमान हैदर, अहमद बदर, पुष्पा मित्र, जावेद अख़्तर, ग़दर, सुरजीत जज्ज, देवनीत, प्रो. गुरदयाल सिंह इत्यादि लेखकों को उद्धृत करते हुए लेखकों की जवाबदेही को परिभाषित किया।

इस सेमिनार की अध्यक्षता पंजाबी साहित्य अकाडमी, लुधियाना के अध्यक्ष डा. लखविंदर सिंह जौहल, पूर्व अध्यक्ष प्रो. गुरभजन सिंह गिल, महासचिव डा. गुरइकबाल सिंह, डा. सुखदेव सिंह सिरसा व पंजाबी लेखक सभा, सिरसा के अध्यक्ष परमानंद शास्त्री पर आधारित अध्यक्षमंडल ने की। पंजाबी साहित्य अकाडमी, लुधियाना के उपाध्यक्ष एवं सेमिनार संयोजक डा. हरविंदर सिंह द्वारा अध्यक्षमंडल एवं वक्ताओं के परिचय उपरांत परमानंद शास्त्री ने सभी उपस्थितजन का स्वागत किया। पंजाबी साहित्य अकाडमी, लुधियाना के महासचिव डा. गुरइकबाल सिंह द्वारा पंजाबी साहित्य अकाडमी की कार्यशैली व सेमिनार की रूपरेखा से अवगत करवाए जाने के बाद कार्यक्रम का आगाज़ महक भारती व कुलदीप सिरसा द्वारा गीत गायन की प्रस्तुति से हुआ। सेमिनार में विचार चर्चा को आगे बढ़ाते हुए पंजाबी विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के प्रो. सरबजीत सिंह ने पंजाबी समाज, ऐतिहसिक चुनौतियों व साहित्य विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि इस दौर की व्यवस्था का चेहरा दिखने में तो मानववादी है लेकिन इसकी मंशा जनविरोधी है। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बारे में विस्तृत चर्चा करते हुए इसके ख़तरनाक पहलुओं से भी अवगत करवाया।

सेमिनार में गुरु हरगोबिंद साहिब पीजी कालेज के प्राचार्य डा. संदीप सिंह मुंडे ने राजस्थान में पंजाबी भाषा, साहित्य व इसके सांस्कृतिक परिदृश्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि राजस्थान में पंजाबी तीसरी भाषा के तौर पर पढ़ाई जाती है। उन्होंने कहा कि चाहे इसकी दशा संतोषजनक नहीं परन्तु प्रयास जारी हैं और उम्मीदें शेष हैं। डा. रतन सिंह ढिल्लों ने हरियाणा में पंजाबी भाषा, साहित्य व इसके सांस्कृतिक परिदृश्य को उद्घाटित करते हुए हरियाणा में इस सबकी उदासीनता के लिए व्यवस्था को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि हरियाणा में पंजाबी भाषा के दूसरे दर्ज़े को व्यवहारिक तौर पर अमल में लाए जाने व हरियाणवी भाषा के विकास हेतु व्यापक लामबंदी लाज़िम है। डा. सुभाष मानसा ने सांस्कृतिक अंत:संवाद एवं हरियाणा का पंजाबी साहित्य विषय के संबंध में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हरियाणवी समाज अभी भी अपनी संकीर्ण सोच से मुक्त नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि मानवीय मूल्य सत्ता के अनुकूल निर्धारित नहीं होते बल्कि यह अपना रास्ता स्वयं तय करते हैं। इस अवसर पर अपने संबोधन में प्रो. गुरभजन सिंह गिल ने कहा कि अपनी भाषा, साहित्य व संस्कृति के विकास हेतु विशाल लामबंदी ही कारगर हो सकती है। उन्होंने इस आयोजन को सफ़ल एवं सार्थक बताया। अपने अध्यक्षीय संबोधन में पंजाबी साहित्य अकाडमी, लुधियाना के अध्यक्ष डा. लखविंदर सिंह जौहल ने कहा कि पंजाबी, भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के विकास हेतु प्रयासों की निरंतरता बनी रहनी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि सत्ता के आशयों के अनुरूप कभी भी साहित्य सृजित नहीं हो सकता क्योंकि साहित्य आम आवाम की आवाज को अभिव्यक्ति प्रदान करता है। उन्होंने आयोजकों को इस विशाल, सफ़ल एवं सार्थक आयोजन के लिए मुबारकबाद प्रदान करते हुए सभी उपस्थितजन के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन सेमिनार संयोजक डा. हरविंदर सिंह सिरसा व पंजाबी लेखक सभा, सिरसा के महासचिव सुरजीत सिरड़ी ने किया।


सेमिनार के दौरान डा. सुखदेव सिंह सिरसा के हिंदी में अनूदित समीक्षा संग्रह ‘पंजाबी कविता की प्रतिरोधी परंपरा’, परमानंद शास्त्री द्वारा परगट सतौज के हिंदी में अनूदित उपन्यास ‘1947’, छिन्दर कौर सिरसा के काव्य-संग्रह ‘भर जोबन बंदग़ी’, डा. कुलविंदर सिंह पदम के नाटक ‘कूकदी कूंज, डा. मंगल सिंह रतिया के काव्य-संग्रह ‘सुलगदे दरया’, भूपिंदर पनीवालिया द्वारा संपादित ‘इक सी गुरमेल सरा’ व मनजीत सिंह मूसाखेड़ा रचित ‘लागूवाद: आख़र तक इन्कलाब’ पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया।


इस अवसर पर पंजाबी साहित्य अकाडमी, लुधियाना के सरपरस्त सदस्य सुरिंदर सिंह सुन्नड़, प्रबंधकीय बोर्ड सदस्य जसवीर झज्ज एवं हरदीप ढिल्लों, प्रलेस पंजाब महासचिव डा. कुलदीप दीप, सुखजीवन, का. स्वर्ण सिंह विर्क, प्रो. आर पी सेठी, प्रो. रूप देवगुण, प्रो. इंद्रजीत धींगड़ा, प्रो. हरभगवान चावला, गुरजीत सिंह मान, प्रो. गुरदेव सिंह देव, डा. के के डूडी, डा. निर्मल सिंह, डा. गुरप्रीत सिंधरा, प्रदीप सचदेवा, डा. सुखदेव हुंदल, हरजिंदर सिंह भंगु, लखविंदर सिंह बाजवा, प्रो. हरजिंदर सिंह, डा. हरविंदर कौर, प्रो. दिलराज सिंह, डा. हरमीत कौर, प्रो. गुरसाहिब सिंह, डा. सुनीता रानी, डा. कर्मजीत कौर, डा. हरदेव सिंह, डा. लखवीर सिंह, प्रो. सतविंदर पूनी, डा. नछत्र सिंह, प्रो. काजल, प्रो. गुरदत्त, गुरतेज सिंह, डा. सिकंदर सिंह सिद्धू, जगदेव फोगाट, कृष्णा फोगाट, संजीव शाद, डा. सुखदेव जम्मू, अरवेल सिंह विर्क, जगमिंदर सिंह कंवर, का. राज कुमार शेखुपुरिया, का. सुरजीत सिंह, डा. हररत्न सिंह गाँधी, बलबीर कौर गाँधी, मा. बूटा सिंह, डा. शेर चन्द, रमेश शास्त्री, अनीश कुमार, हरभजन बेदी, अमरजीत सिंह संधु, सुरजीत रेणु, नवदीप सिंह, मेजर शक्तिराज कौशिक, शील कौशिक, लेखराज ढोट, अंशुल छत्रपति, गौरवदीप कौर के अलावा हरियाणा, पंजाब व राजस्थान से विद्यार्थियों, अध्यापकों एवं अन्य प्रबुद्धजन समेत लगभग तीन सौ पचास प्रतिभागियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई।

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