सच कहता हूं दुआ में मां की, मुझको खूब असर लगता है।
साहित्य सभा की मासिक गोष्ठी आज स्थानीय आरकेएसडी कॉलेज के प्रांगण में आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता डॉ हरीश झंडई ने की तथा संचालन डॉक्टर प्रद्युम्न भल्ला ने किया।
गोष्ठी का आरम्भ करते हुए डॉक्टर भल्ला ने सभी साहित्यकारों का स्वागत किया और साहित्य सभा से जुड़े सदस्यों रामफल गाैड, राजेश भारती, गुलशन मदान, रिसाल जांगड़ा को साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित किए जाने पर बधाई देते हुए और आगे बढ़ने की शुभकामनायें की।
उन्होंने कहा कि साहित्य सभा के लिए यह गौरव के क्षण हैं कि इतने सदस्यों को एक साथ हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा लाखों रुपये के पुरस्कारों से नवाजा गया है। उल्लेखनीय है कि हरियाणा भर में पिछले तीन वर्षों के सम्मान एवं पुरस्कारों की घोषणा में ज्यादातर सदस्य एवं साहित्यकार ऐसे रहे हैं जिनको साहित्य सभा कैथल विगत 53 वर्षों में अपने मंच से सम्मानित कर चुकी है।
संस्था के उप प्रधान कमलेश शर्मा ने इस बात पर संतोष एवं खुशी व्यक्त करते हुए सभी सभी नए लेखकों को भी और ज्यादा लिखने एवं पुस्तकें प्रकाशित करवाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा जिला स्तरीय साहित्यकार निर्देशिका हेतु भी सदस्यों को अवगत करवाया एवं प्रपत्र दिए।
गोष्ठी का आगाज राजेश भारती के इस हाइकु से हुआ, हाथ न आती, मगर परछाई, साथ निभाती। पुंडरी से पधारे ग़ज़लकार दिनेश बंसल की ग़ज़ल की बानगी कुछ यूं रही, एक अदद मुस्कान लबों की जीनत है, हम दरवेश की बस इतनी दौलत है। इसी कड़ी में रविंद्र कुमार रवि ने गजल पेश करते हुए कहा, सच से रिश्ता मांग रहा हूं, पागल हूं क्या मांग रहा हूं।
इसी क्रम में मंच संचालन करते हुए डॉक्टर प्रद्युमन भल्ला ने अपनी बात कुछ इस तरह रखी, पग-पग पर दुश्मन की चालें इक इक कर नाकाम हुईं, सच कहता हूं दुआ में मां की मुझको खूब असर लगता है, विश्वासों के पावन जल से हम रिश्तो को सींच न पाए, अब हैरानी क्यों होती है, सूखा पेड़ अगर लगता है इसी कड़ी में कर्म चंद केसर का हरियाणवी अंदाज इस तरह रहा, अपना दर्द लकाैके हमने देखी दुनिया झाै कै, हमने मानस का किरदार निभाया अपना सब कुछ खो कै ।
रिसाल जांगड़ा की हरियाणवी बानगी देखिए, छोडै काेन्या कीमें कसर ये अपने लोग, दिल पर मारे चोट जबर ये अपने लोग। इसी कड़ी में श्यामसुंदर गौड ने होली की शुभकामनाएं कुछ इस प्रकार दी, देष, कपट, आतंक की होली न जलाइये, अबीर गुलाल रंग एक दूजे पर लगाइए। किसान आंदोलन पर दिल्ली की स्थिति का वर्णन करते हुए शमशेर कैंडल ने कहा, सिंधु गाजीपुर, धानसा, टिकरी दिल्ली सोने न पाएगी अब बेफिक्री।
काेराेना के प्रति जागरूक करते हुए अनिल कौशिक ने कहा, शांत करोना फिर आ गया फन उठाकर अपना। इसी प्रकार डॉ संध्या ने स्त्री को परिभाषित करते हुए कहा कि स्त्री होती है मिट्टी, शायद खुद मिट कर भी बचा लेती है अस्तित्व तुम्हारा। मधु गोयल की इच्छा है, मैं पंछी मतवाला हूं, इस बाग में आऊंगा जाऊंगा,दुनिया के कोने कोने में प्रेम के गीत सुनाऊंगा।
रामफल गौड़ ने कहा, सुन कै उसके दिल की कहानी, खत्म हुई कड़वाहट पुरानी। दिलबाग अकेला ने कहा, दोस्त देखे बहुत से हमने जमाने में, कुछ तो डूबे थे गम में, कुछ मयखाने में। संदीप रंगा ने कहा, सुबह होते ही निकल पड़ता है, आदमी दाे जून की रोटी के जुगाड़ में। मिठु राम मानव ने आज के हालात पर व्यंग करते हुए कहा, आग अलगाव जला रखी है, चालबाज ने बिसात बिछा रखी है।
प्रीतम शर्मा ने रिश्तों के बारे में कुछ इस तरह से बयान दिया, जहां सीता धर्म पर चलती हो, वहां लक्ष्मण रावण नहीं बनता। महेंद्र पाल सारस्वत ने कहा, देवर भाभी, जीजा साली, समधन समधी। इसी कड़ी में आज अपनी प्रस्तुतियां देने वालों में लहना सिंह अत्री, सुबे सिंह, डॉक्टर चतुर्भुज बंसल, योगी यशवीर सिंह आर्य प्रमुख रहे। डॉ हरीश झंडई ने अध्यक्षीय टिप्पणी करते हुए अपनी लघु कविता आदमी की जिंदगी प्रस्तुत की।
उल्लेखनीय है कि साहित्य सभा कैथल के मार्ग दर्शन में होली के पावन अवसर पर 28 मार्च को स्थानीय आरकेएसडी कॉलेज में लघु कविता उत्सव नाम से एक साहित्यिक समारोह का आयोजन किया जा रहा है। यह आयोजन हरियाणा प्रादेशिक लघु कविता मंच की कैथल शाखा द्वारा होगा। आज की जलपान की व्यवस्था रामफल गाौड द्वारा की गई थी। अंत में सभी का धन्यवाद किया