Home News Point भाषाई विभिन्नता हमारे मुल्क की सबसे बड़ी ख़ूबसूरती: प्रो. हरभगवान चावला

भाषाई विभिन्नता हमारे मुल्क की सबसे बड़ी ख़ूबसूरती: प्रो. हरभगवान चावला

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पंजाबी अध्यापक कुलदीप सिंह ने प्रचलित गायकी व गीतकारी में व्याप्त प्रदूषण को रेखांकित करते हुए वैकल्पिक सभ्याचारक गायकी एवं गीतकारी को परिभाषित किया। उन्होंने वैकल्पिक गायकी व गीतकारी से संबंधित रचनाओं की ख़ूबसूरत प्रस्तुतियां भी दीं।


सिरसा: 9 नवंबर:
भारत सरकार के शिक्षा, कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय; हरियाणा सरकार व उच्चतर शिक्षा निदेशालय, हरियाणा के निर्देशानुसार 28 सितंबर से 11 दिसंबर तक मनाए जा रहे भारतीय भाषा उत्सव के अंतर्गत आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों की श्रृंखला के अंतर्गत राजकीय नैशनल महाविद्यालय, सिरसा में साहित्यिक क्लब व हिंदी एवं पंजाबी विषय परिषद के संयुक्त तत्वावधान में प्राचार्य डा. संदीप गोयल के संरक्षण व प्रो. हरजिंदर सिंह, डा. कर्मजीत कौर एवं डा. हरविंदर कौर के संयोजन में भारतीय भाषाओं की भूमिका विषय पर क्षेत्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। महाविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी डा. सत्यपॉल ने यह जानकारी देते हुए बताया कि उप-प्राचार्य एवं साहित्यिक क्लब प्रभारी द्वारा आमंत्रित वक्तागण व सभी उपस्थिजन के स्वागत उपरान्त सेमिनार में भारतीय भाषाओं की दशा व दिशा से संबंधित विषय और विचार व्यक्त करते हुए सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो. हरभगवान चावला ने कहा कि जो भाषा जितने लोगों के संपर्क में आएगी उस भाषा की स्थिति उतनी ही बेहतर होगी। व्यक्ति को अधिक से अधिक भाषाएं सीखनी चाहिएं लेकिन अपनी मातृ भाषा की मृत्यु की कीमत पर नहीं। उन्होंने कहा कि जो भाषा अपने आप में जितनी अधिक भाषाओं के शब्द आत्मसात करेगी वह भाषा उतनी ही अमीर होगी। किसी भी भाषा की ख़ूबसूरती को समझने के लिए उस भाषा को गहनता से जानना समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषाओं की बहुलता हमारे मुल्क की ख़ूबसूरत विशेषता है जिसे बनाए रखना समय की सबसे बड़ी अनिवार्यता है। उन्होंने सभी स्थानीय भाषाओं को बचाए रखने हेतु विशेष बल देते हुए कहा कि आज बागड़ी भाषा सबसे अधिक ख़तरनाक दौर है जिसकी ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। मातृ भाषा के महत्व एवं पंजाबी भाषा की दशा व दिशा संबंधी विचार व्यक्त करते हुए राजकीय महिला महाविद्यालय, सिरसा के पंजाबी विभागाध्यक्ष डा. हरविंदर सिंह ने कहा कि बच्चा सबसे बढ़िया ढंग से तभी सीख सकता है यदि प्रारंभिक वर्षों में उसे उसकी मातृ भाषा में शिक्षा प्रदान की जाए। प्रारंभिक शिक्षा हेतु मातृ भाषा ही सबसे उचित माध्यम है। उन्होंने कहा कि मनुष्य के ज्ञान व बौद्धिक विकास में मातृ भाषा की भूमिका अन्य भाषाओं की तुलना में अग्रणी है। डा. हरविंदर सिंह ने कहा कि हरियाणा में पंजाबी भाषा को दूसरा दर्ज़ा मिलने के बावजूद भी हरियाणा में पंजाबी भाषा, संस्कृति, साहित्य एवं इसके अध्ययन-अध्यापन की स्थिति संतोषजनक नहीं है जिसके लिए अभी और सहूलियतों व कोशिशों की दरकार है। राजकीय नैशनल महाविद्यालय, सिरसा के अंग्रेजी विभाग के डा. सत्यपॉल ने मातृ भाषाओं की भूमिका विषय पर अपने संबोधन में कहा कि व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में मातृ भाषा की भूमिका अग्रणी एवं अतुलनीय है। उन्होंने कहा कि आज हिंदुस्तान की सभी भाषाओं व बोलियों के विकास व उत्थान की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर मातृ भाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास हेतु मातृ भाषा ही सबसे अधिक कारगर है। मातृ भाषा में जितना अपनापन है उतना किसी और भाषा में नहीं हो सकता।

राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, भावदीन के पंजाबी अध्यापक कुलदीप सिंह ने प्रचलित गायकी व गीतकारी में व्याप्त प्रदूषण को रेखांकित करते हुए वैकल्पिक सभ्याचारक गायकी एवं गीतकारी को परिभाषित किया। उन्होंने वैकल्पिक गायकी व गीतकारी से संबंधित रचनाओं की ख़ूबसूरत प्रस्तुतियां भी दीं। इस अवसर पर हिंदी, पंजाबी व अंग्रेजी विभाग के विद्यार्थियों के अलावा प्रो. हरजिंदर सिंह, डा. कर्मजीत कौर, डा. हरविंदर कौर, डा. सुनीता रानी, डा. दीपाली, डा. शोभा, प्रो. अशोक कुमार, प्रो. दिनेश, प्रो. सुनील कुमार, प्रो. रमेश, डा. मंजू मेहता, डा. राजविंदर कौर इत्यादि ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई। हिंदी विभागाध्यक्ष डा. कर्मजीत कौर ने सभी वक्तागण व उपस्थिजन के प्रति महाविद्यालय परिवार की ओर से आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन पंजाबी विभागाध्यक्ष डा. हरविंदर कौर ने किया।

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