जनकल्याण शोध की अनिवार्य शर्त: प्राचार्य प्रो. राम कुमार जांगड़ा
जीसीडब्ल्यू सिरसा में तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला हुई संपन्न
अनुसंधान पद्धति पर आधारित डीजीएचइ प्रायोजित थी कार्यशाला
सिरसा: 25 सितंबर:
किसी भी संस्था या संस्थान की पहचान उसमें हो रही शोध के स्तर से ही निर्धारित होती है। शोध की प्रकृति मौलिक, तार्किक विवेचन व वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित होनी चाहिए। यह विचार उच्चतर शिक्षा विभाग, हरियाणा के उप-निदेशक डा. सुखविंदर सिंह ने राजकीय महिला महाविद्यालय, सिरसा में आयोजित डीजीएचइ प्रायोजित अनुसंधान पद्धति विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के समापन सत्र में मुख्यातिथि के तौर पर अपने संबोधन में व्यक्त किए।
डा. सुखविंदर सिंह ने इस महत्वपूर्ण आयोजन के समापन सत्र में शिरकत करने का अवसर प्रदान करने हेतु महाविद्यालय परिवार के प्रति आभार व्यक्त करते हुए उच्चतर शिक्षा विभाग, हरियाणा के निदेशक राजीव रत्तन आईएएस की ओर से भी इस सफल आयोजन हेतु आयोजकों को मुबारकबाद प्रदान की। उन्होंने शोधार्थियों का आह्वान किया कि वह व्यक्ति व समाज के हितोपयोगी शोध को अपना ध्येय बनाने का प्रयास करें। महाविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी डा. हरविंदर सिंह ने यह जानकारी देते हुए बताया कि उच्चतर शिक्षा विभाग, हरियाणा के निदेशक राजीव रत्तन आईएएस के मुख्य संरक्षण, प्राचार्य प्रो. राम कुमार जांगड़ा के संरक्षण, डा. दलजीत सिंह के समन्वय, डा. हरविंदर सिंह के संयोजन व आयोजन सचिव डा. रुपिंदर कौर व प्रो. शिवानी के सहयोग से आयोजित इस कार्यशाला के समापन सत्र में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के रिटायर्ड प्रो. डा. सी आर डरौलिया ने विशिष्ट अतिथि के तौर पर शिरकत की व अध्यक्षता प्राचार्य प्रो. राम कुमार जांगड़ा ने की। समापन सत्र का आगाज़ मुख्यातिथि व अध्यक्षमंडल द्वारा सरस्वती देवी के समक्ष दीप प्रज्वलन से हुआ। कार्यशाला के समन्वयक डा. दलजीत सिंह द्वारा उपस्थितजन के स्वागत उपरांत इस कार्यशाला की रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी। 23 सितंबर को इस कार्यशाला के उच्चतर शिक्षा विभाग, हरियाणा की संयुक्त निदेशिका डा. अर्चना नेहरा के मुख्यातिथि के तौर पर संबोधन व जीजेयू हिसार की डा. तरुणा द्वारा कार्यशाला का की-नोट अड्रेस प्रस्तुत करने के उपरांत तीन दिनों में आयोजित विभिन्न तकनीकी सत्रों में जीजेयू हिसार की डा. तरुणा ने अनुसंधान या शोध की परिभाषा, अर्थ, महत्त्व, उद्देश्य एवं अनुसंधान पद्धतियों; एमडी यू रोहतक के रिटायर्ड प्रो. डा. राजबीर हुडा ने शोध अभिकल्प व शोध के प्रकार; जीजेयू हिसार के प्रो. डा. संदीप राणा ने गुणात्मक अनुसंधान, नमूनाकरण और सांख्यिकी उपकरण के विभिन्न तरीके; चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय, सिरसा के प्रो. डा. पंकज शर्मा ने साहित्यिक चोरी; प्रो. डा. सुरेंद्र सिंह कुंडू ने डेटा के प्रकार, डेटा संग्रहण के उपकरण एवं विधियां; प्रो. डा. उमेद सिंह ने तार्किक विवेचन व कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के प्रो. डा. सी आर डरौलिया सामाजिक विज्ञान के लिए सांख्यिकी पैकेज इत्यादि विषयों के बारे में सैद्धांतिक व प्रायौगिक पक्षों पर आधारित विस्तृत, लाभप्रद एवं सारगर्भित जानकारियां प्रदान कीं। इस कार्यशाला में विभिन्न शिक्षण संस्थानों के तीस प्रतिभागियों ने अपनी सक्रिय सहभागिता दर्ज़ करवाई। समापन सत्र में फीडबैक देते हुए प्रतिभागियों ने इस कार्यशाला के आयोजन, प्रबंधन एवं विषय वस्तु पर हर्ष एवं संतोष व्यक्त करते हुए इसे अपने लिए अत्यंत फलप्रद, उपयोगी एवं सार्थक बताया एयर आयोजकों के प्रति आभार जताया। इस अवसर पर मुख्यातिथि डा. सुखविंदर सिंह ने सभी प्रतिभागियों को सहभागिता प्रमाणपत्र प्रदान किए। अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्राचार्य प्रो. राम कुमार जांगड़ा ने मुख्यातिथि डा. सुखविंदर सिंह, अतिथिगण, प्रतिभागियों एवं अन्य उपस्थितजन का स्वागत करते हुए ऐसे आयोजनों के लिए अनुमति प्रदान किए जाने हेतु डीजीएचइ हरियाणा के प्रति विशेष आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि मौलिक, तार्किक, वैज्ञानिक एवं जन-कल्याणकारी होना शोध की अनिवार्य शर्त है। कार्यक्रम का संचालन संयोजक डा. हरविंदर सिंह व आयोजन सचिव डा. रुपिंदर कौर ने किया। सत्र के समापन पर आयोजन सचिव प्रो. शिवानी ने महाविद्यालय परिवार की ओर से सभी उपस्थिजन के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया। समापन सत्र के इस अवसर पर राजकीय महाविद्यालय, भट्टू कलां की प्राचार्य डा. सुदेश गुप्ता, रानियां के प्राचार्य प्रो. महेंद्र प्रदीप, डबवाली के प्राचार्य प्रो. श्याम लाल फुटेला, रतिया के प्राचार्य डा. रविंद्र पुरी व जीएनसी सिरसा से डा. गुरनाम सिंह व राजकीय महिला महाविद्यालय, सिरसा के शिक्षक व गैर-शिक्षक सदस्यों ने अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज़ करवाई।